परमाणु से काल की गणना
तत्त्वबोध
तत्त्व बोध मोक्ष के इच्छुक लोगों के लिए एक मौलिक पाठ है। 'मैं' पर केंद्रित सीमा की भावना से मुक्ति। इसका महत्व वेदांत के कुछ प्रमुख शब्दों की संक्षिप्त परिभाषा प्रस्तुत करना है। तत्त्व बोध सभी महत्वपूर्ण संस्कृत शब्दों को प्रस्तुत करता है और उनकी विस्तृत व्याख्या प्रदान करता है।
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योगसूत्र
पतंजलि का योग सूत्र योग के सिद्धांत और अभ्यास पर संस्कृत सूत्रों का एक संग्रह है। योग सूत्र को भारत में ऋषि पतंजलि द्वारा प्रारंभिक शताब्दी ईस्वी में संकलित किया गया था। योग सूत्र अष्टांग, अभ्यास के आठ तत्वों, जो समाधि में परिणत होते हैं, के संदर्भ के लिए जाना जाता है।
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शिव संहिता
इस में पांच अध्याय हैं। पहले में ज्ञान, दूसरे अध्याय में नाड़ी संस्थान, तीसरे अध्याय में पांच प्राण उप प्राण आसन व प्राणायाम, चौथा अध्याय मुद्रा प्रधान है व साधक की घट परिचय निष्पत्ति आदि अवस्था का वर्णन हैं। पांचवे में 200 सेे अधिक श्लोक हैं, इसमें साधक प्रकार व सप्त चक्रों का विस्तृत वर्णन है।
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उपदेश सारम
उपदेस सार सबसे लोकप्रिय वेद ग्रंथों में से एक है। यह क्रिया (कर्म योग), योग (अष्टांग योग) और ज्ञान (ज्ञान योग) के मार्गों की व्याख्या करता है और कैसे वे आत्म ज्ञान के अंतिम लक्ष्य तक ले जाते हैं।
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वैशेषिक सूत्र
वैशेषिकसूत्र कणाद मुनि द्वारा रचित वैशेषिक दर्शन का मुख्य ग्रन्थ है। कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छः पदार्थों का निर्देश किया है।
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भगवद गीता
भगवद गीता एक जटिल और गहन पाठ्य सामग्री है जिसकी कई असाधारण तरीकों से व्याख्या की गई है। यह दुनिया भर के लिए समझ और विचार का स्रोत है। इस में कृष्ण अर्जुन को सत्य के चरित्र, आत्मा और ईश्वर और व्यक्ति के बीच संबंध के बारे में भी सिखाते हैं।
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प्रश्नोत्तर रत्नमालिका
यह रचना हमारे जीवन एवं वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रस्तुत करती है, जो देश, काल एवं परिस्थिति से परे है । जीवन के कठिन मार्ग पर चलते हुए ये सभी सिद्धांत हमें सही पथ दिखाते हुए हमारा जीवन उन्नत करते हैं।
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प्रबोधसुधाकर
यह स्थूल शरीर से शुरू होकर इंद्रियों, फिर मन, वैराग्य, आत्मज्ञान, माया, सूक्ष्म और कारण शरीर, अद्वैतवाद का अनुभव, आत्मज्ञान, भक्ति, ध्यान, सगुण ब्रह्म और निर्गुण ब्रह्म के साथ एकाकार होना और अंत में ईश्वरीय कृपा से लीन होना आदि विषयों पर आधारित है।
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परमहंस गीता
इसमें परमहंस अवस्था में विचरण करते परमज्ञानी ब्राह्मण भरत की सिन्धुनरेश रहूगण से भेंट होने तथा उनके द्वारा राजा को दिये गये गूढ़ तात्त्विक उपदेशों का वर्णन है। इस गीता में दस इन्द्रियाँ तथा अहंकार - ये ग्यारह वृत्तियाँ मन की बतायी गयी हैं, जो माया के वशीभूत होकर सुख-दुःख का अनुभव कराती हैं।
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अभिज्ञानशाकुन्तलम्
अभिज्ञान शाकुन्तलम् महाकवि कालिदास का विश्वविख्यात नाटक है । इसमें राजा दुष्यन्त तथा शकुन्तला के प्रणय, विवाह, विरह, प्रत्याख्यान तथा पुनर्मिलन की एक सुन्दर कहानी है। पौराणिक कथा में दुष्यन्त को आकाशवाणी द्वारा बोध होता है पर इस नाटक में कवि ने मुद्रिका द्वारा इसका बोध कराया है।
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